आम जन मानस प्रकाश को ईश्वरीय मानता है और अंधकार को तामसी शक्तियों का प्रतीक.पर ये दोषपूर्ण अवधारणा है .
शक्ति (ऊर्जा ) तो शक्ति ही है फिर वो दोषपूर्ण कैसे हो सकती है ? उस का प्रयोग हम कैसे करते है ये हम पर निर्भर करता है .
कृष्ण शक्ति को समझने के लिए हमें कुछ तथ्य समझने होंगे .
वैज्ञानिक द्रष्टि
एक परमाणु पर कोई आवेश नही होता है जैसे ही एक इलेक्ट्रान उस से निकलता है जितना आवेश इलेक्ट्रान पर होता है उतना ही आयन पर . जब इलेक्ट्रान पुनः अपनी कक्षा में आ जाता है तो वे मिल कर उदासीन हो जाते है . आयन का द्रव्यमान इलेक्ट्रान की तुलना में बहुत अधिक होता है .
यदि एलेक्ट्रोन अपनी कक्षा में वापस आ भी जाये तो परमाणु पर तो कोई आवेश नही होता पर उस के अन्दर स्थित इलेक्ट्रान पर तो आवेश होता ही है और वो अनन्त काल तक अपनी कक्षा में चक्कर लगता रहता है. जब तक की उस को आवश्यक वाह्य ऊर्जा न मिल जाये . परमाणु के अन्दर धन आवेश भी है और ऋण आवेश भी पर परमाणु पर कोई आवेश नही है . उस के अन्दर गति भी है . प्रकाश की गति से इलेक्ट्रान अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहा होता है . और घूर्णन गति भी करता है ठीक वैसे ही जैसे की अपनी पृथ्वी अपनी अक्ष और कक्ष दोनों पर घूमती है .
पत्येक परमाणु पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करता है और मानव काया तो असंख्य परमाणु से बनी हुई होती है . स्थिरप्रज्ञ( न सुख में सुखी होने वाला और न ही दुःख में दुखी होने वाला ) जिसे अहम् ब्रम्हास्मी का बोध हो वो पूरे बह्मंड का प्रतिनिधित्व करता है . उस के अन्दर सब कुछ है . यही कारण है की भगवान श्री कृष्ण के मुख में माता यशोदा को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन हो जाते है
पर ये भी मोक्ष की अवस्था नही है क्यों की अस्तित्व तो है ही .
आईये विज्ञानं के एक समीकरण को देखे
परमाणु ( ब्रह्माण्ड ) के अन्दर इलेक्ट्रान (जीव ) अनन्त काल तक चक्कर लगता रहता है . जव तक उस का अस्तित्व है वो गतिशील है .उस को अपना अस्तित्व नष्ट करने के लिए अपने से ठीक विपरीत positron की आवश्यकता होती है और दोनों ही अपना अस्तित्व समाप्त कर देते है और प्रकाश ऊर्जा के बण्डल फोटान में बदल जाते है . ये बण्डल अखंड और अविनाशी होते है .
अपना अस्तित्व समाप्त करना ही मोक्ष है .
सिर्फ प्रकाश मार्ग पर चलने से मुक्ति संभव नही है . ये तो सिर्फ एक शिरा है मोक्ष के लिए तो दूसरा शिरा कृष्ण शक्ति (डार्क मैटर एनर्जी ) भी चाहिए .
क्रमशः