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Tuesday, October 26, 2010

तत्व दर्शन परिचय भाग -1 ,आकाश तत्व

                                                                 तत्व की अवधारणा 
भारतीय दर्शन  में ये ब्रह्माण्ड ५ तत्वों से निर्मित है . हमारा स्थूल और सूक्ष्म शरीर इन्ही तत्वों से निर्मित है .वैसे कुल तत्व २७ मने गए है पर अपने ब्रम्हांड की रचना  ५ तत्वों  से मानी गयी है .ये तत्व ही हमारा  अस्तित्त्व  है .
अगर हम थोडा भी इन के बारे में जान जाये तो बहुत से रहस्य  अपने आप ही खुलने लगते है .प्रत्येक तत्व की अपनी पहचान है .
तत्वों का ज्ञान न सिर्फ आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति दे सकता है बल्कि यह औषधि के गुण  भी रखता है .इस की जानकारी मैं आप को एक अलग पोस्ट में दूंगा .
                                                                 आकाश तत्व  
 बिग बैंग थेओरी  अब प्रमाणिक है जब की हजारो वर्ष पूर्व ये हमारे ऋषि  खोज चुके थे .
सबसे पहले space बनाया गया जिसे हम आकाश तत्व से संबोधित करते है .यही एक मात्र तत्व है   जो परलौकिक शक्ति प्रदान करता है . बाकि के ४ तत्व लौकिक शक्तिया प्रदान करते है . इस तत्व को तभी जाना जा सकता है जब की बाकि  के ४ तत्व ज्ञात हो .   .हमारे शरीर में  इस का स्थान  सहस्त्रार चक्र में माना गया है  सारे तत्व बारी बारी से हमारे  शरीर में प्रधान  होते रहते है अर्थात कुछ घंटो के अंतराल पर तत्व बदलते रहते है . आकाश तत्व कब हमारे शरीर में प्रधान है ये हम निम्न कारणों का विश्लेषण कर के ज्ञात कर सकते है .
(१) संध्या काल- यहाँ  पर दो प्रकार के संध्या काल है .
(क ) ये वह संध्या काल है जिसे हम  प्रभात तथा  संध्या  के नाम से जानते है . इस समय हमारा मन शांत होता है . और हम ईश्वर तत्व के निकट होते है . हमारा मन  क्यों शांत होता है इस को  भी स्पष्ट कर देता हू .
प्रकति में उपस्थित हर कण की अपनी आवृत्ति होती है .जैसे सबसे छोटे कण परमाणु है और और प्रत्येक परमाणु अपनी मध्य स्थिति के दोनों तरफ कम्पन करता रहता है .अर्थात उस की अपनी आवृत्ति होती है . इन की आवृत्ति क्रमशः  बढती  और  और घटती रहती है . रात और दिन के  १२ बजे इसकी आवत्ति अधिकतम  होती है .यही कारण  है की  इस समय हमारा मन विचलित होता है . इसी प्रकार प्रभात और संध्या की इन की आवृत्ति न्यूनतम होती है इस लिए हमारा मन शांत होता है .
 (ख) प्राणायाम तथा अन्य बहुत की जगह जिस संध्या काल का वर्णन है वो यही है .
जब दोनों नथुनों के वायु का प्रवाह एक साथ हो तो यह संध्या काल है इस  समय तत्व बदल रहे होते है और वायु  का प्रवाह  इडा  से पिंगला या पिंगला से इडा की ओर स्थानांतरण हो रहा होता है .इस समय किया गया कोई भी भौतिक कार्य सफल नही होता .सिर्फ आध्यात्मिक कार्य ही सफल होते है .
                                पहचान के अन्य लक्षण 
(रंग ) - अन्य सभी तत्वों के ४ रंगों का मिश्रण , काला रंग 
(स्वाद)- सूछ्म अध्यन पर मुख का स्वाद कडुआ प्रतीत होता है .
(आकृति )- सब की मिश्रण 
(स्थान )-  सहस्त्रार  चक्र 
     इस तत्व का ज्ञान होने पर  भूत , भविष्य और वर्त्तमान में झाकने की शक्ति प्राप्त हो जाती है ..
(बीज मंत्र ) -   हं 
                           
 




 

5 comments:

ZEAL said...

अद्भुत जानकारी। --आभार !

ABHISHEK MISHRA said...

बिग बैंग थेओरी के अनुसार पहले सिर्फ एक बिंदु था फिर एक महा विस्फोट के बाद ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ . कुछ पोस्ट पहले मैंने भारतीय दर्शन के अनुसार श्रष्टि निर्माण के बारे में उल्लेख किया था . ये भी यही बात कहती है . पर जहा बिग बैंग थेओरी पर अभी श्रष्टि निर्माण क्रम के बारे में शोध चल रहा है वही भारतीय दर्शन इस की पूर्ण व्याख्या करता है . आगे की पोस्ट में ये बात स्पष्ट हो जाएँगी .

Unknown said...

अद्भुत जानकारी....आभार

रचना दीक्षित said...

समझने की कोशिश कर रही हूँ

ABHISHEK MISHRA said...

@रचना जी ,
इस को समझना थोडा सा कठिन है पर इस के भाग-५ तक सब स्पष्ट हो जायेगा .