विचार आने की प्रक्रिया पर अपना मत मैं अपने पिछले लेख में रख चुका हू. वास्तव में हम विचारो का एक समुच्चय है .जिस के पास जैसे विचारो का संकलन है उन का व्यक्तित्व भी वैसा ही है .
ईश्वरत्व की प्राप्ति के लिए 'राज योग' में ८ अंग है जो क्रमशः यम ,नियम . आहार , प्रत्याहार ,आसन , ध्यान , योग , समाधि है . यहाँ पर अंतिम अवस्था समाधि है .
राज योग कुंडली जाग्रत कर देता है . मूलाधार चक्र से सुरु हुआ सफ़र जो योग से आरम्भ होता है अन्तिम चक्र सहस्त्रार चक्र (कमल चक्र )पर प्राण को उस चक्र पर केन्द्रित कर अनन्त का द्वार हमारे लिए खोल देता है .
भक्ति योग भी ईष्ट के ध्यान से आरम्भ हो कर अंततः समाधि पर ही जाता है .
अब प्रश्न ये है की ये अंतिम अवस्था समाधी क्या है ?
समाधी
हमारे मष्तिस्क में प्रति सकेंड लगभग ३ विचार तरंग प्रकति के माध्यम से आते है पर उन में से कुछ ही हमारी वृत्ति के अनुसार हमारी अन्तः प्रकति से संयोग कर के विचार तरंग में प्रकट हो जाते है .
ये ठीक ऐसा है जैसे की रेडियो का रिसीवर जिस आवृत्ति पर सेट किया गया हो उसी आवृत्ति की तरंगे ग्रहण करता है .
इन विचारो के आने के क्रम में जो समयान्तराल होता है वह विचार शून्य होता है यही वह समय है जब आत्मा अपने मूल स्वरुप के अत्यंत निकट होती है.
अर्थात समय से परे
समय घटनाओ के सापेछ होता है और विचार शून्य की अवस्था हमें समय से परे कर देती है .यही समाधी है .इसी लिए कभी कभी तो साधक कई दिनों तक भी समाधी में रह लेता है और समय का उसे पता नही चलता है .
समय से परे ही तो ईश्वर है .और समाधी हमें वह अनुभव देती है .
सच मानिये इस दुनिया का सवसे कठिन कार्य जो हमारी सीमा से अन्दर है विचार शून्य होना ही है .यदि आप सोचते है की मैं कुछ नही विचार करूँगा तो यह भी एक विचार है.
आंख बंद कर किसी पर ध्यान लगाना भी विचार है .
यदि आप सोचते है की आप सोते में विचार शून्य है तो भी आप गलत है .क्यों की उस वक्ते हमारा मष्तिस्क हमारी अतृप्त इच्छाओ को जो हमारे अचेतन मन में है , सपने के रूप में तृप्त कर वह गांठ खोलने का कार्य करता है .शायद इसी लिए कहते है जो मांगो वो ईश्वर देता है ,
इस अवस्था में आने का अष्टांग योग ( राज योग ) के अलग एक और मार्ग है जो देखने में बहुत सरल है पर अभ्यास करने पर ये भ्रम टूट जाता है .
इस का नाम है साक्षी भाव
12 comments:
विचार शुन्यता कि जानकारी देती सुन्दर पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद.
अभिषेक जी आपका लेख बहुत अध्यात्मिक होने क़े कारण मै तो कभी-कभी समझ नहीं पता हू की क्या टिप्पड़ी करू इतना ही कह सकता हू की आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे है मै हिंदुत्व व अध्यात्मिक कार्य को राष्ट्रीय मानकर सभी क़ा स्वागत करता हू
बहुत-बहुत धन्यवाद
.
मेरा मस्तिष्क तो परेशान है अपने दिमाग में आने वाली विचारों की आँधियों से।
सुन्दर आलेख के लिए बधाई।
..
सादर वन्दे...अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद
सुंदर लेखन
संगत की रंगत पर्………
सद् भावना के रंग, बैठें जो पूर्वाग्रही संग।
संगत की रंगत तो, अनिच्छा ही लगनी हैं॥
जा बैठे उद्यान में तो, 'महक' आये फ़ूलों की।
कामीनी की सेज़ बस, कामेच्छा ही जगनी है॥
काजल की कोठरी में, कैसा भी सयाना घुसे।
काली सी एक रेख, निश्चित ही लगनी है॥
कहे कवि 'सुज्ञ'राज, इतना तो कर विचार।
कायर के संग सुरा की, महेच्छा भी भगनी है॥
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_18.html
Om Namah Shivay, Nice..keep it up.
Bahut Sundar Prayaas Hai. Please Nirantarataa Banaye Rakhein. 'AHWAN' Se Judein.
विचार शुन्यता कि जानकारी देती सुन्दर पोस्ट|
bahut gajab kar diya.narayan narayan
.
आपने समाधि अवस्था को बहुत स्पस्ट रूप से व्यक्त किया. क्या यह सब आपका मौलिक चिंतन है?
यदि हाँ, तो यह चिंतन किसी दार्शनिक सूत्र को सहजता से खोलने से कम नहीं है. मैं नतमस्तक हूँ आपके चिंतन के समक्ष.
V4-0 G मेरे परम मित्र हैं. मुझे गौरव है कि मैं उनका मित्र हूँ. और मैं आज से आपके ब्लॉग का अनुयायी हुआ.
.
welcome
हर-हर महादेव...बहुत अच्छा कर रहे हैं आप
Post a Comment