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Saturday, July 18, 2015

अनन्त ब्रह्मान्ड परिकल्पना एव पंचम विमा

हम जिस ब्रह्मान्ड मे रहते है उस मे तीन विमाए है। यदि किसी वस्तु की हमे सही विमाए एव आकृति एकदम सही चाहिये तो हमे चौथी विमा समय भी चाहिये जिस के सापेक्ष हम किसी भी देश काल मे बाकी तीन विमाओ को वस्तुओ को बनाते और नष्ट करते देख सकते है। परन्तु इस विमा की भी अपनी सीमा है।आप  सिर्फ उस जगह पर ही परिवर्तन देख सकते है। जहां पर  आप हैं। आप के शरीर के परमाणु भी अलग अलग उस समय जहां थे हो जाएगे। दृष्टा आप की आत्मा ही हो सकती है। आप आत्म रूप मे जहां चाहे देख सकते है पर अनन्त विशालता के समक्ष ये बहुत तुच्छ है।
जिस प्रकार ये तीनो विमाए चौथी विमा मे समाहित है उसी प्रकार ये चारो पाचवी विमा मे समाहित है। जिसे हम सर्वकाल व्यापी विमा भी कह सकते ।
चौथी विमा से इस का  इस प्रकार आप समझ सकते है ।मान लीजिए समय एक झरना  है तो जब आप चौथी विमा मे होंगे तो आप उसी अनन्त झरने मे कहीं होंगे पर जब आप पाचवी विमा मे होंगे तो आप उस झरने मे नही अपितु उस अनन्त  झरने के एक द्रष्टा होंगे जो एक बार मे ही उस अनन्त झरने को अनन्त दूरी तकी देखता है। पाचवी विमा हम भी पा सकते है पिछले  एक लेख मे मैने साक्षि भाव पर विचार प्रस्तुत किया है।वो ही एक मात्र मार्ग है उस स्थिति मे जाने का।
अनन्त ब्रह्मान्ड की परिकल्पना के लिए ये तथ्य आवश्यक था। अगले लेख मे इस पर अपने विचार प्रस्तुत करूंगा।