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Saturday, September 25, 2010

निराकार की साकार उपासना

अक्सर  ये प्रश्न की निराकार की साकार  उपासना को  ऋषियों ने जो की वैज्ञानिक द्रष्टि रखते थे क्यों अपनाया .

 जब ब्रह्म निराकार  है तो न तो वह किसी की सहायता कर सकता है और न ही किसी को दण्डित ! 
परमात्मा जी ने एक इच्छा की 
'' मैं एक से अनेक हो जाऊ ''
बस फिर से  विश्राम अवस्था में आ गए .१/४  से स्रष्टि का निर्माण हुआ और ३/४ विश्राम में ही रहा .
३/4 जिस में कोइ गुण ही नही ,वो कुछ भी नही करता .सारा प्रयास जो चेतना में है वही करते है अर्थात जिन में कम्पन है वही विश्रमावस्था में जाने (मोछ ) का प्रयास करते है .चेतना के स्तर अलग अलग होते है . 
वैज्ञानिक द्रष्टि 
सबसे छोटा कण परमाणु है !.वस्तु चाहे कोई भी हो चाहे वो लकड़ी हो या लोहा  परमाणु का भौतिक गुण धर्म सामान होते है .बस एलेक्ट्रोन और प्रोटान की संख्या से उन में परिवर्तन हो जाता है .वो भी इतना विविध की  के उन की कल्पना भी असंभव लगती है .
प्रत्येक परमाणु अपनी मध्य स्तिथि के दोनों  ओर कम्पन करता है .अर्थात   प्रत्येक परमाणु की अपनी आवृत्ति होती है .
हमारा  सूछ्म शरीर तत्व विज्ञानं में ५ वायु और १० उपवायु  से निर्मित  माना गया है .
५ वायु  आपान , उदान , व्यान, समान और प्राण है .  जिसमे प्राण वायु  कम्पन के लिए उत्तरदाई है .ध्यान ,योग के द्वारा जिसने जितना अपने प्राण के कम्पन का आयाम बड़ा लिया उस का इलेक्ट्रो मग्नेटिक फिल्ड  उतना ही सक्तिसाली और विस्तृत हो जाता है और वो उतना ही प्रकति के रहस्यों को जनता जाता है .और जब प्राण के आयाम अनन्त हो जाते है वो वही अवस्था मोछ है .
                                                    जैन दर्शन 
जैन दर्शन पूर्णतया स्पष्ट और निरीश्वर वादी  है .यह सिर्फ आत्मा को मानता है ..इस के अनुसार मनुष्य  कर्मो के आधार पर जन्म लेता है और कर्मो के आधार पर स्वयं ईश्वरत्व को प्राप्त  हो सकता है .
                                                      अर्थात 
कोई ईश्वर स्वर्ग के सिंघासन पर आसीन नही है  और न ही कोई उस का साझीदार है जो सिफारिश कर के स्वर्ग का रास्ता दिखाए .क्यों की न तो कोई स्वर्ग है और न ही कोई नरक  ,जो भी है यही है  क्यों की कार्य -कारण श्रंखला के कारण प्रकति स्वचालित है और कर्म के आधार पर फल मिलता है . 
वे झूठे है जिन्होंने ईश्वर को जानने का दावा किया .(पिछली पोस्ट देखे ).
जो निर्गुण है उस की प्रशंशा करो या निंदा उस से कुछ भी घटित नही होने वाला 
जो चेतना के स्तर पर हमसे श्रेष्ठ है निसंदेह उन के पास ज्ञान है जो वो हमें दे कर  हमारी आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रसस्त  कर सकते है .एक समय के बाद जब ''अहम् ब्रह्स्मी '' का बोध हो जायेगा तो फिर किसी की सहायता की जरुरत नही रह जाती .आगे का  मार्ग वे स्वयं तय कर लेते है और दूसरो को ईश्वरत्व का बोध कराते है .वे जो कहते है वही ग्रन्थ बन जाते है. वही सत्य होता है .
जो ये कहते है की ईश्वर की मृत्यु  नही होती तो राम  और कृष्ण  क्यों मरे .तो वे ये  जान ले .मैं ही ईश्वर हू ऐसा जानने  वाले   की मृत्यु नही होती वे तो पहले अप्रकट थे अपनी इच्छा से प्रकट हुए और सन्देश देते हुए फिर अनन्त  ने विलीन हो गए 
 क्यों की वो एक ही था जो एक से अनेक हो गया .तो सब में  एक ही है बस वुद्धि रूपी माया हमें अपने अस्तित्व का अहसास कराती है .
राम ,कृष्ण की पूजा से हम अपने उसी रूप को  प्राप्त हो जायेंगे और फिर हमें आगे का रास्ता स्वयं तय कर लेंगे .भगवान श्री कृष्ण कहते है गीता में 
.
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥७- २४॥

मुझ अव्यक्त (अदृश्य) को यह अवतार लेने पर, बुद्धिहीन लोग देहधारी मानते हैं। मेरे परम
भाव को अर्थात मुझे नहीं जानते जो की अव्यय (विकार हीन) और परम उत्तम है।


नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥७- २५॥

अपनी योग माया से ढका मैं सबको नहीं दिखता हूँ। इस संसार में मूर्ख मुझ अजन्मा और विकार हीन
को नहीं जानते।
                                                  गणितीय द्रष्टि से 
 गणित से सिद्धात भी प्राकतिक नियमो का पूर्णतया  पालन करते  है .
आईये अनन्त श्रेणी के एक प्रश्न देखे 
प्रश्न -  √{(√6+(√6+(√6+(√6+ ─  ─∞}    का  मान ज्ञात करे ?
हल-   माना  की 
                                                                                                 X=√(6+x ) .
ध्यान से देखिये  यहाँ  पर दोनों पक्ष  बराबर नही है .फिर भी बराबर का निशान दोनों  पक्ष   बराबर दिखा रहा है .यहाँ  पर अनन्त श्रेणी में से एक  पद   छोड़ दिया गया है .इस  का तर्क ये है की  अनन्त राशी में से एक बूंद निकालने  पर राशी पर प्रभाव नगण्य  होता है . 
अब  दोनों पक्ष    का वर्ग करने पर द्वि घात  समीकरण  बनेगा जिस को हल कर ने पर x  का मान 3   आएगा .
सम्पूर्ण राशी का मान निकलना तब तक संभव नही है जब तक की हम एक पद को आधार न बनाये .
अर्थात  अनन्त को प्राप्त करने के लिए हमें एक केंद्र बिंदु  चाहिए जो हमें उस तक पंहुचा सके .वर्ना अनन्त को  अनन्त काल तक खोजिये . .
ये बिंदु  हमारा  चेतन बिंदु है  जिस को हम आधार मान कर अपने चेतना का स्तर उठाते जाते  है . 
                                                                            क्या पूजने योग्य है ?????
सनातन धर्म में किसी की भी पूजा से पहले 51  या 21  बार परिक्रमा करते है .ताकि भली भाति यह सुनिश्चित हो जाये की वह वस्तु वास्तव में पूजने योग्य है या नही . उस के बाद ही पूजा की जाती है .हमें किसी की भी पूजा करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की वह हम से चेतना के स्तर पर श्रेष्ठ है अथवा नही . क्यों की हम अपने जिस रूप की पूजा करेंगे   उसी  रूप को प्राप्त  होंगे .क्यों की प्रकति का अटल नियम है की यदि पूर्व की ओर   जाओगे तो पूर्व ही पहुचोगे पश्चिम नही . 
 
 
 
 

Tuesday, September 21, 2010

इश्वर के गुण

यह पोस्ट डा . अयाज जी जिन हो ने  इस्लामिक तरीके से हिन्दू धर्म में सुधार जा बीड़ा उठाया है के प्रश्न ''ईश्वर के मुख्य गुण कौन  कौन से है '' पर आधारित है .
                                      इश्वर के गुण 
इस से पहले ये  देखे की आखिर ईश्वर है क्या 
राम चरित्र मानस में भगवान शिव की स्तुति पहले उन की निर्गुण  ब्रहम के रूप में उपासन की गई है और फिर निर्गुण  ही साकार रूप में प्रकट होता है 
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।
यहा पर इश्वर को निर्गुण और  निर्विकल्प  माना गया है
                                                     गीता के अनुसार 

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति॥८- २०॥

इन व्यक्त और अव्यक्त जीवों से परे एक और अव्यक्त सनातन पुरुष है, जो सभी जीवों का अन्त होने पर भी नष्ट
नहीं होता।
यह पर अव्यक्त सनातन पुरुष की बात कही गयी है .अर्थात  वो अज्ञात (अव्यक्त )  है .
इस बात को हम ऐसे समझ सकते है की हम जितनी भी चीजे जानते है उनका आकार है चाहे वो वस्तु कितनी ही छोटी क्यों न हो .जिस को हम जान गए उस का आकार निश्चित हो गया और ईश्वर तो अनन्त है अगर हम ईश्वर को जान गए तो तो उसका आकार भी निश्चित हो जायेगा फिर वो ईश्वर कैसे हो सकता है .
अर्थात   जो ईश्वर को जानने का दावा करते है वे  झूठे है .क्यों की बुद्धि के द्वारा  ईश्वर को नही जाना जा सकता है  क्यों की बुद्धि की  वृत्त की तरह  एक निश्चित परिधि होती है .
पर जो पांचो तत्वों के  रहस्यों को जिनसे हमारा शरीर निर्मित है जान गया . वह   धीरे धीरे   जितने तत्व विघटित करता जायेगा वह वह ईश्वरत्व के उतने ही पास जाता जायेगा .
अर्थात     ‘अहं ब्रह्मस्मि‘ का बोध ही ईश्वरत्व  की प्राप्ति है .गीता में भगवान श्री कृष्ण इस बात का प्रत्यछ प्रमाण है . 
वही महोम्मद साहब ईश्वर को जानने का दावा करते थे .फ़रिश्ते आ कर उनके अल्लाह के बारे में बताते थे .अल्लाह को भी बिचौलिए की जरुरत थी .
अब  अपने मुख्य विषय पर आते है
जो निर्गुण है उस में गुण कैसा ? ? गुण अवगुण तो मनुष्य में होते है 
                                                    ईश्वरीय गुण 
इश्वर तो निर्गुण है पर मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले गुणों को हम ईश्वरीय गुण कहते है 
दया ,छमा ,प्रेम ,परोपकार आदि गुणों को ईश्वरीय गुण कहते है  ये वे गुण है जिन्हें अपनाने पर आत्मसंतुष्टि   मिलती है  और आत्मबल मिलता है . 
 
 


 

Saturday, September 11, 2010

शिव का वास्तविक स्वरूप

शिव के बारे में अधिकतर लोंग अल्प या भ्रामक ज्ञान रखते है . यही कारण है की जब कोइ अन्य मजहब का व्यक्ति शिव के बारे में पूछता है तो हम न तो शिव जी  के बारे में ठीक बता पाते है और न ही उन कुतर्को को सही जवाब दे पाते है जो शिव और शिव लिंग के बारे में प्रचारित किये जा रहे  हैं . इस के लिए शिव का यथार्थ स्वरुप जानना आवश्यक है .
                                      शिव एक तत्व हैं .
शिव  तत्व से तात्पर्य  विध्वंस या क्रोध से है .दुर्गा शप्तशती के पाठ से पहले पढ़े जाने वाले मंत्रो में एक मन्त्र है 
'' ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामी नमः स्वाहा ''
दुर्गा शप्तशती में आत्म तत्व ,विद्या तत्व के साथ साथ शिव तत्व का शोधन परम आवश्यक माना गया है इस के बिना ज्ञान प्राप्ति आसंभव है .जरा सोचिये अगर हम किसी बच्चे को क्रोध करने से बिलकुल ही रोक दे तो क्या उस का सर्वांगीर्ण विकास संभव है .बच्चे का जिज्ञासु स्वभाव मर जायेगा  और वो दब्बू हो जायेगा .
शिव तत्व विध्वंस का का प्रतीक है. सृजन और विध्वंस अनंत श्रंखला की कड़ियाँ है जो बारी बारी से घटित होती हैं .ज्ञान ,विज्ञानं ,अद्यात्मिक , भौतिक, जीवन के किसी भी  छेत्र में  यह  सत्य है .
ब्रह्मांड की बिग बैंग थेओरी  इस  बात को प्रमाणित करती है . ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक महा विस्फोट के बाद हुई .. विस्फोट से स्रजन हुआ न की विनाश .
ऋषि मुनियों ने अनेक चमत्कारिक  खोजे की है पर शिव तत्व की खोज अदभुद थी जो ब्रह्माण्ड के सारे रहस्य खोलते हुए जीवन मरण के चक्र से मुक्त करती थी .शिव का  महत्त्व  इतना है की वे सब से ज्यादा पूज्य है .इसी लिए कहा गया है की 
सत्यम शिवम् सुन्दरम 
                               अर्थात 
शिव ही सत्य है 
सत्य ही शिव है 
शिव ही सुन्दर है    
.                                         शिव और शक्ति 
शिव और शक्ति मिल कर ब्रम्हांड का निर्माण करते है .इस श्रसटी में कुछ भी एकल नही है अच्छाई है तो बुराई है ,प्रेम है तो घ्राण भी है .यदि एक सिरा है तो दूसरा शिरा भी होगा .एक बिंदु के भी दो सिरे होते है .
जिस वक्त सिर्फ १ होगा उसी  वक्त    मुक्ति हो जाएगी क्यों की कोइ भी वास्तु अकेले नही होती है अर्थात दोनों एक साथ मिलने पर ही मुक्ति संभव है .
एक परमाणु पर कोइ आवेश नही होता है पर जब उस से एक इलेक्ट्रान निकल जाता है तो उस पर उतना ही धन  आवेश आ जाता है जितना की इलेक्ट्रान पर ऋण आवेश . इस प्रकार आयन (इलेक्ट्रान निकलने के बाद परमाणु आयन कहलाता है ) और इलेक्ट्रान दोनों ही तब तक क्रियाशील रहते है जब तक वे फिर से न मिल जाये .
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है , ऊर्जा और प्रदार्थ 
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा  ऊर्जा है . बिना एक के  दूसरा अपनी अभिवयक्ति नही कर सकता . दया ,छमा, प्रेम आदि सारे गुण तो आत्मा रुपी दर्पण में ही प्रतिबिंबित होते है .
शिव प्रदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक है . दुर्गा जी 9  रूप है जो किसी न किसी भाव का प्रतिनिधित्व करते है .
अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर आटोहान ने परमाणु बम बना कर  परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई  जो कितनी विध्वंसक थी सब  जानते है.
                                                          e / c =  m c 
इस के अनुसार  पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है  अर्थात दो नही एक ही है  पर वो दो हो कर स्रसटी  का निर्माण करता है  .
ऋषियो ने  ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था.  
 भगवान अर्ध नारीश्वर इस का प्रमाण है .
                          शिवलिंग क्या है ?
राम चरित्र मानस में शिव की स्तुति  की ये लाइन देखिये 
'' अखंडम अजन्म भानु कोटि प्रकाशम् ''
अर्थात जो अजन्मा है अखंड है  और कोटि कोटि सूर्यो के प्रकाश के सामान है .जिस का जन्म ही नही हुआ उस का फिर उस के लिंग से क्या तात्पर्य है .
ब्रह्म - अंड,
अर्थात ब्रह्माण्ड अंडे जैसे आकर का है .
शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतीक है . 
पूजा से हमें शक्ति मिलती है .शिवलिंग की पूजा शिव -शक्ति के मिलन  का प्रतीक है जो हमें सांसारिक बन्धनों से मुक्त करती है .
इन रहस्यों को जो जानता  है वो शिव भक्ति से सराबोर हो जाता है फिर वो किसी भी मजहब  का हो ..शिव जी के अनेक मुस्लिम भक्त भी है .

        

               
 
  

Wednesday, September 1, 2010

लव जेहाद ,एक सुनियोजित साजिश

लव जेहाद ,
ठीक सुना आप ने ,जेहाद वो भी प्यार से ,
इस्लाम बढाने का नया नीच और घ्रणित हथकंडा 
आज कल बहुत बड़े पैमाने पर ये शाजिश चल रही है . मुस्लिम लड़के भोली भाली हिन्दू लड़किया को बरगला कर मुस्लिम बना रहे है . कमी हम में भी है , हम अपने बच्चो को ये नहीं बताते की इतिहास की सच्चाई क्या है . समाज में कौन कौन से कुचक्र चल रहे है .उन से उनके दोस्तों के बारे में नहीं पूछते . जिस  के कारण ये कुचक्री अपने मकसद में कामयाब हो जाते है .
अभी २ साल पहले दिल्ली में 500 हिन्दू -मुस्लिम विवाह हुए . सबसे आश्चर्यजनक बात ये है की सारे 500  लड़के मुस्लिम और लड़किया हिन्दू थी .
हिन्दू लड़किया आसानी से  धोखा खा जाती है   क्यों की धर्म  पर हमारी पकड़ या आस्था कमजोरहो गई है .हिंदुत्व की बात तो घिसे पिटी बात लगती है आज की पीडी को . मैं भी आज की पीड़ी का नौजवान हू  और ये बात महसूस  करता हू .
बहुत से केस  में ये मुस्लिम लड़के अपना  हिन्दू  नाम  बताते है  और जब तक सच्चाई पता चलती है बहुत देर हो चुकी होती है .
 अभी लगभग  4  माह पूर्व की 1  घटना है . एक मुस्लिम लड़का  अपना हिन्दू नाम बताते हुए एक लड़की को झासा दे कर पीलीभीत  से कानपुर बुलाया .लड़की  की उम्र 16  साल के आस पास थी  जाहिर सी बात है उस को बरगलाया गया था .यहाँ पर  उसे सच्चाई का पता चलते ही लड़की ने शादी से इंकार कर दिया . अब उस  के पास
आत्महत्या  का  विचार था . पर इश्वर  की क्रपा से समय रहते मेरे दोस्तों को इस  का पता चल गया और उस लड़की को समझा कर उस  के घर  तक  छोड़ कर आये .
मैं  इतना ही  कहूँगा की अपने बच्चो में भी धर्म के प्रति आस्था बढाए जिस से उन के साथ धोखा  न हो.इन को सही  इतिहास  की जानकारी दे . जिस से वे आने वाते खतरों से सावधान हो कर उन का सामना कर सके .