मनुष्य और संगणक में अनेक समानताए है . यदि इन में अंतर करने को कहा जाये तो पहला जवाब होता है की संगणक निर्देशों पर कार्य करता है पर मनुष्य अपनी इच्छा से .आईये इन की समानताओ के कुछ बिन्दुओ पर विचार करते है.
(१) मनुष्य और संगणक दोनों ही निर्देशों पर कार्य करते है
.मनुष्य विचारो का एक समुच्चय (संगठन ) है .
वास्तव में मनुष्य विचारो का संगठन है .वो व्यक्ति कैसा है ये उस के समुच्चय में उपस्थित विचार ही निर्धारित करते है . पहले विचार आते है फिर वो मनुष्य के द्वारा कर्म के रूप में प्रकट हो जाते है .और ये कर्म ही उस की गति और व्यक्तित्व के लिए उत्तरदाई है .
अर्थात
कर्म का बीज विचार है .
अब प्रश्न ये उठता है की विचार कहा से आते है .
विचार प्रकति के द्वारा प्रेषित होते है .
हम जो भी देखते और सुनते है या अपनी इंद्रियों से ग्रहण करते है मष्तिष्क में सूछ्म तरंग के रूप में विचार आता है और हम जो भी इन्द्रियों के माध्यम से ग्रहण कर करते है वो सब प्रकति (माया ) के अन्दर ही है .
अर्थात प्रकति ही हमें विचार करवाती है और हम कर्म के लिए प्रेरित हो कर कर्म करते है .
उद्धहरण - यदि मेरे सामने स्वादिष्ट व्यंजन रक्खे हो तो उन को देख कर यदि भूख लगी होगी तो उन्हें खाने की इच्छा अन्यथा अनिक्छा होगी .
अर्थात
वाह्य प्रकति द्वारा प्रेषित विछोभ (तरंग ) हमारी अन्तः प्रकति से संयोग कर के विचार उत्पन्न करती है .अतः
मनुष्य प्रकति के द्वारा संचालित है
(२) जिस प्रकार संगणक में हार्डवेअर और साफ्टवेअर है ठीक यही व्यवस्था मनुष्य में भी है
संगणक में जिस को हम छू सके वह हार्डवेअर और जिसे न छू सके वो साफ्टवेअर कहलाता है .
मनुष्य के स्थूल शरीर को हम हार्डवेअर और जीव , मन, बुद्धि को साफ्टवेअर मान सकते है .
(3) संगणक विद्धुत ऊर्जा से चलता है और मनुष्य की वास्तविक ऊर्जा प्राण द्वारा उत्पन्न सूछ्म विद्धुत ऊर्जा है .
(४) दोनों में ही स्मृति कोष है .
संगणक में दो प्रकार की मेमोरी होती है
(अ) रीड ओनली मेमोरी ( अस्थाई )
(ब) रेंडम एक्सिस मेमोरी (स्थाई )
मनुष्य में भी इसी प्रकार की स्मृति है . दिन भर हम जो भी करते है उस का अधिकांश भाग हमें याद नही रहता पर कुछ चीजे हमारी स्मृति कोष में recall करने पर तुरंत ही याद आ जाती है .अर्थात हम अपनी यादो को संगणक की स्थाई मेमोरी से तुलना कर सकते है .
(५) संगणक की तरह हमारे मष्तिस्क में भी फोल्डर और एक जैसे फोल्डर्स को संगठित करती हुई फाईल्स होती हैं .
ये बात शायद आप को अजीब लगे पर सत्य है .आईये देखते है कैसे ?
.दरसल सूचनाए एक तरंग के रूप में एक विशिष्ट जगह पर संचित हो जाती है. ये एक जैसी तरंगे एक पोटली जिसे ज्ञान कोष (फोल्डर ) कहते है संचित हो जाती है .
जान हम कोए नई चीज देखते है तो पिछले सारे फोल्डर से तुलना की जाती है जब वांछित सूचना नही मिलती है तो एक नया फोल्डर उस सूचना को संचित कर लेता है और भविष्य में यही फोल्डर जानकारी उपलव्ध कराता है .
भ्रम की स्तिथि तब उत्त्पन्न होती है जब हम किसी सूचना के लिए गलत ज्ञानकोष या उसी ज्ञानकोष का गलत फोल्डर गलती से आ जाता है .
3 comments:
I will be highly thankful to you if you see this post and make a comment
हम आपके कृतग्य आभारी होङ्गे यदि आप इसको पादः कर एक तिप्पदी दे सके॥
http://sankalaan.blogspot.com/2010/10/blog-post_11.html
जान हम कोए नई चीज देखते है तो पिछले सारे फोल्डर से तुलना की जाती है जब वांछित सूचना नही मिलती है तो एक नया फोल्डर उस सूचना को संचित कर लेता है और भविष्य में यही फोल्डर जानकारी उपलव्ध कराता है .
भ्रम की स्तिथि तब उत्त्पन्न होती है जब हम किसी सूचना के लिए गलत ज्ञानकोष या उसी ज्ञानकोष का गलत फोल्डर गलती से आ जाता है .
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बहुत सुन्दर अंदाज़ में आपने विचारों की प्रक्रिया को समझाया...आभार एवं बधाई अभिषेक जी।
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श्री अभिषेक जी आपने मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी देने का समय निकाला जिसके लिये आपका हृदय से आभार।
आपकी टिप्पणी के बारे में आपसे अनुरोध है कि श्री अभिषेक जी हमें इस चर्चा में शब्दों का प्रयोग बहुत संभल कर करना चाहिए, कम से कम कानून केवल शब्दों को ही पकड़ता है.
आपने जिन शब्दों का प्रयोग किया है, उनका मैंने कहीं भी प्रयोग नहीं किया है, श्री अभिषेक जी आप तुलना करके देखे.
आप लिखते हैं कि-"आपका पुजारी को बिना सबूत अपराधी घोषित कर देना आपको उन लोगो की ही श्रेणी में खड़ा कर देता है, जिन्होंने ये अन्याय किया."
जबकि मैंने लिखा है कि-"इसी दिन कथित रूप से मन्दिर के पुजारी (अब दिवगंत) ने एक 13 वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार किया। बलात्कार के अगले दिन रहस्यमय परिस्थितियों में बच्ची की मृत्यु हो गयी। पुलिस ने घटनास्थल से पुजारी को पकड लिया। स्थानीय लोगों का कहना था कि मृत्यु से पूर्व बच्ची ने पुजारी के खिलाफ बयान भी दिया था।"
"कथित रूप से" का मतलब तो आप समझते ही होंगे.
हाँ आपकी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि-"जिस प्रकार आप निर्दोष थे, उसी प्रकार पुजारी भी तो निर्दोष हो सकता है."
मैंने कभी नहीं कहा कि पुजारी दोषी था, लेकिन मैं उन्हें निर्दोष होने का प्रमाण-पत्र भी नहीं दे सकता! इस प्रकरण में मेरे आलावा सर्वाधिक संदेहास्पद व्यक्ति पुजारी ही था, जिसका उल्लेख न्यायिक कार्यवाही में भी है.
आपने बुधिमात्पूर्ण टिप्पणी की है और एक वाजिब सवाल उठाया है. जो न्यायिक द्रष्टिकोण के जरूरी है. लेकिन यदि ये सवाल आपने पहली पोस्ट में उठाया होता तो अधिक प्रासंगिक था, क्योंकि अब ये आफ्टर थोट में शामिल हो गया है.
फिर भी टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
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आपकी प्रस्तुत रचना पढकर आपके अपने विषय में गहराई से जु‹डे होने का प्रमाण देती है। शुभकामनाओं सहित।
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