पिछली पोस्ट में कुछ तत्थ स्पष्ट न हने के कारण तत्त्व दर्शन को समझने में आप लोगो को कठिनाई हुई .मैं इस लिए ये श्रंखला को रोक ये पोस्ट उन तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए है .
स्वर
स्वर दो प्रकार के बताये गए है
सूर्य स्वर - जब आप का दाहिनी तरफ से साँस ले रहे हो तो आप का दाहिना स्वर (सूर्य स्वर ) चल रहा होता है.दाहिनी तरफ पिंगला नाड़ी और बाई तरफ इड़ा नाड़ी है . अतः जब पिंगला से स्वर चल रहा हो तो वह सूर्य स्वर है .
चन्द्र स्वर - जब आप की साँस बाई तरफ से(इड़ा ) चल रही हो तो चन्द्र स्वर होता है . इस की प्रकति शांत व ठंडी मानी जाती है जब की सूर्य स्वर की प्रकति गर्म मानी जाती है .
जब सुषुम्ना नाड़ी अर्थात वायु का प्रवाह मध्य में हो और इड़ा और पिंगला दोनों से ही वायु प्रवाहित हो रही हो तो इसे संधि काल या संध्या काल कहते है .यह स्थिथि तब उत्त्पन्न होती है जब स्वर बदल रहे हो .हर ढाई घडी में स्वर बदलते रहे है .
इन स्वरों में में बारी बारी से निश्चित क्रम में तत्व चलते है .इन का क्रम निम्न है .
(१)अग्नि
(२)वायु
(३)प्रथ्वी
(४) जल
जब पाचवे तत्व की बारी आती है तो वह सुषुम्ना अर्थात बीच में चलता है .यह आकाश तत्व है . इस में इड़ा और पिंगला दोनों से ही वायु प्रवाहित हो रही होती है .इस के बाद स्वर बदल जाता है .जैसे पहले इड़ा में स्वर चल रहा होगा तो सुसुमना के बाद वायु पिंगला में प्रवाहित होने लगेगी और उसी क्रम में फिर चार तत्व चलेंगे .इस प्रार बारी बारी से तत्व दोनों द्वारो में चलते है .
स्वर के ज्ञान से अगर कोई स्वर के अनुसार कार्य करता है तो वह अवश्य ही सफल होता है .जैसे जब आप घर से निकलते वक्त जिस तरफ का स्वर हो उस तरफ का अंग पहले बहार निकले तो आप के सफल होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है .स्वर के बारे में बहुत कुछ है और मैं इस के बारे में अलग से एक पोस्ट लिखूंगा ताकि तत्व विज्ञानं समझ में आ सके .
तत्वों की पहचान आकृति द्वारा
तत्वों की पहचान आकृति द्वारा भी कर सकते है . इस के लिए दर्पण विधि का प्रयोग करते है
दर्पण विधि -- इस में हम दर्पण के सामने खड़े हो कर अपना सर सीधा कर दर्पण पर साँस छोड़ते है और भाप द्वारा बनी आकृति का विश्लेषण कर उस समय चल रहा तत्व ज्ञात कर लेते है .आगे इस की जानकारी दी जाएगी .
रंग द्वारा पहचान
रंग द्वारा पहचान करने के लिए सूक्ष्म विश्लेषण की आवश्यकता है . ध्यान अवस्था में रंग पहचान कर तत्व ज्ञात किया जा सकता है .
स्वाद द्वारा पहचान
सूछ्म विश्लेषण कर मुख के स्वाद पर ध्यान दे .जैसे जिस वक्त आकाश तत्व होगा मुख का स्वाद कडुआ प्रतीत होगा .
7 comments:
बहुत अच्छा प्रयास और अध्यात्मिक भी इसे आगे बढ़ाने की आवस्यकता है.
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बहुत बढ़िया जानकारी । इडा , पिंगला और मध्य श्वास ! विषद विवेचन के लिए आभाar.
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अतिउत्तम जानकारी...आप के माध्यम से बहुत कुछ सिखने को मिल रहा है...आभार..
रोचक पुरा ज्ञान
अध्यात्म के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
आपको दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें ।
मेरे भाई हिन्दुस्तान मे राजनीति के हमाम मे सब नंगे है।
सारी पार्टियां चोर चोर मोसेरे भाई हैं ये पब्लिक को दिखाने के
लिये एक दूसरे के विरोधी हैं। देश मे जितने भी संगठन या पार्टी है सबका मकसद सत्ता है
बहिरा बांटे रेवड़ी अंधरा चीन्ह चीन्ह के देय
ऐसी कौन सी पार्टी है या ऐसा कौन सा नेता है जो भ्रष्ट नही
है आज कल तो भ्रष्टाचार की होड़ मे संत महत्मा भी कूद पड़े
हैं। राजनीती मे धर्म और धर्म मे राजनीती घुस कर खिचड़ी बन
गयी है। मेन मकसद है पैसा कैसे कमायें करोंड़ो रुपये फूंक कर गद्दी पायी अगले चुनाव मे लगाना है।
अपने भारत मे गुलामी का सैकड़ों साल पुराना जींस फुल फॉम मे है हम और आप लोग ही उसे जिंन्दा रखे हुऐ है जैसे हर नेता हर पार्टी हर संगठन के पीछे भारी भीड़ है। नेता. पार्टी; संगठन; चाहे जो करवा दे गुलाम मरने मारने पर उतारु हो जाते हैं। जितना मंा बाप की इज्जत नही करते अपने बुजुर्गो का कहना नही मानते उससे ज्यादा नेताओं, पार्टी,संगठनो का कहना मानते है इनके कहने पर कुछ भी करने को तैयार है। हमारे पूर्वजो ने मुगलो फिर अंग्रेजों की गुलामी की आज हम नेता पार्टी संगठनो की गुलामी कर रहे है।
जिस दिन ये गुलामी का जींस मर जायेगा उस दिन ये नेता और अपना भारत सुधर जायेगा।
अब देखिये यदि मै किसी पार्टी से जुड़ा हूं तो विरोधी पार्टी के उूपर खीज उतारुंगा क्योकि वो सत्ता मे है जिस दिन मेरी पार्टी सत्ता मे आजायेगी मुझे अपनी पार्टी जिससे मै आस्था से जुड़ा हूं उसकी गलती पर मजबूरी है मै आंखें बंद कर लूंगा।
क्योकि मे गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हूं कही न कहीं मेरा स्वार्थ भी जुड़ा है।
भाई खीज कर अपने खून को मत जलाओ कमजोर हो जाओगे। चिल्लाते चिल्लाते कई उूपर चले गये नेताओं को कोई फर्क नही पड़ता मोटी खाल के होते है नेताओ की जात अलग होती है। इनके इंसान का दिल नही रहता और न ये इंसान रह जाते हैं
एक लेख पढ़ा था
अगर दुनिया को बदलना है तो खुद को बदल डालो दुनिया अपने आप बदल जायेगी।
इस जींस को मारने की शुरुआत हमे और आपको करनी पड़ेगी।
फालतू मे अपनी एनर्जी नंगा करने मे वेस्ट कर रहे हैं।
आसमान मे थूंकोगे थूक वापस मंुह पे गिरेगा
पहले हम इस गुलामी से बाहर निकले और फिर दूसरो को निकालने मे ताकत लगाये। हम अपनी ताकत नेताओ या पार्टी या संगठन मे बर्बाद कर देते है
अच्छे प्रयास सार्थक होते है
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