इश्वर के गुण
इस से पहले ये देखे की आखिर ईश्वर है क्या
राम चरित्र मानस में भगवान शिव की स्तुति पहले उन की निर्गुण ब्रहम के रूप में उपासन की गई है और फिर निर्गुण ही साकार रूप में प्रकट होता है
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।
यहा पर इश्वर को निर्गुण और निर्विकल्प माना गया है
गीता के अनुसार
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः। यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति॥८- २०॥इन व्यक्त और अव्यक्त जीवों से परे एक और अव्यक्त सनातन पुरुष है, जो सभी जीवों का अन्त होने पर भी नष्ट
नहीं होता।
यह पर अव्यक्त सनातन पुरुष की बात कही गयी है .अर्थात वो अज्ञात (अव्यक्त ) है .
इस बात को हम ऐसे समझ सकते है की हम जितनी भी चीजे जानते है उनका आकार है चाहे वो वस्तु कितनी ही छोटी क्यों न हो .जिस को हम जान गए उस का आकार निश्चित हो गया और ईश्वर तो अनन्त है अगर हम ईश्वर को जान गए तो तो उसका आकार भी निश्चित हो जायेगा फिर वो ईश्वर कैसे हो सकता है .
अर्थात जो ईश्वर को जानने का दावा करते है वे झूठे है .क्यों की बुद्धि के द्वारा ईश्वर को नही जाना जा सकता है क्यों की बुद्धि की वृत्त की तरह एक निश्चित परिधि होती है .
पर जो पांचो तत्वों के रहस्यों को जिनसे हमारा शरीर निर्मित है जान गया . वह धीरे धीरे जितने तत्व विघटित करता जायेगा वह वह ईश्वरत्व के उतने ही पास जाता जायेगा .
अर्थात ‘अहं ब्रह्मस्मि‘ का बोध ही ईश्वरत्व की प्राप्ति है .गीता में भगवान श्री कृष्ण इस बात का प्रत्यछ प्रमाण है .
वही महोम्मद साहब ईश्वर को जानने का दावा करते थे .फ़रिश्ते आ कर उनके अल्लाह के बारे में बताते थे .अल्लाह को भी बिचौलिए की जरुरत थी .
अब अपने मुख्य विषय पर आते है
जो निर्गुण है उस में गुण कैसा ? ? गुण अवगुण तो मनुष्य में होते है
ईश्वरीय गुण
इश्वर तो निर्गुण है पर मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले गुणों को हम ईश्वरीय गुण कहते है
दया ,छमा ,प्रेम ,परोपकार आदि गुणों को ईश्वरीय गुण कहते है ये वे गुण है जिन्हें अपनाने पर आत्मसंतुष्टि मिलती है और आत्मबल मिलता है .
6 comments:
बहुत अच्छा आपका प्रयास सराहनीय है ईश्वर करे आप सफल हो
धन्यवाद
@अभिषेक जी,
आपकी इस बात से सहमत हूँ की 'बुद्धि के द्वारा ईश्वर को नही जाना जा सकता है क्यों की बुद्धि की वृत्त की तरह एक निश्चित परिधि होती है .'
लेकिन इस बात से असहमत हूँ की 'मोहम्मद (स.) साहब ईश्वर को जानने का दावा करते थे'. बल्कि नबी का यह कहना था की 'मख्लूकात में सबसे पहले और सबसे ज्यादा ईश्वर को उन्होंने जाना.' दोनों वाक्यों में फर्क है. इस ब्रह्माण्ड के बारे में हम भी जानते हैं, आप भी और स्टीफन हाकिंस भी. अब स्टीफन हाकिंस की जानकारी हमसे और आपसे ज्यादा होगी लेकिन इसका यह मतलब नहीं की वह ब्रह्माण्ड के बारे में सब कुछ जानता है. वास्तव में हमारे नबी और इमाम स्वयें यही कहते हैं की हमें अल्लाह के बारे में उतना ही ज्ञान है जितना खुद उसने स्वयें हमें दिया है.
इमाम हज़रत अली (अ.) कहते हैं, ‘‘सम्पूर्ण तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जिस की तारीफ तक बोलने वालों की पहुंच नहीं। जिस की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। न कोशिश करने वाले उसका अधिकार चुका सकते हैं। न ऊंची उड़ान भरने वाली हिम्मतें उसे पा सकती हैं। न दिमाग और अक्ल की गहराईयां उस की तह तक पहुंच सकती हैं। उस के आत्मिक चमत्कारों की कोई हद निश्चित नहीं। न उस के लिए तारीफी शब्द हैं। न उस के लिए कोई समय है जिस की गणना की जा सके। न उस का कोई टाइम है जो कहीं पर पूरा हो जाये।'
जैदी जी , मैंने पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हू हजरत अली साहब बेहद नेक और ज्ञानी थे ,पर ये बात और लोगो को कैसे पचती . यही ख्याल मेरा हुसैन साहब के लिए है जिन्हों ने वृद्ध अवस्था में अभी अन्याय के खिलाफ तलवार उठा कर आदर्श प्रस्तुत किया .
पर ये सुन्नी आतातईयो के षड़यंत्र का शिकार हो गए .
क्या कोई परमात्मा से भी सुंदर ,बलवान ,तेज वाला है ,वही सबका रचना करने वाला ,हरन करने वाला है ,वही सब कुछ देने वाला है इसलिए वही पूजनीय है ....
कहाँ से आया है परमात्मा
हिरण्यगर्भ समवत्तताप्र्ये भूतस्य जात्ः परिरेक आसित
स दाधार पृथिवी द्धामुतेमॉ कस्मे देवाय हविसा विध्हेम
जो इस जगत के पूर्व था ,इस जगत ,सूर्य आदि सभी लोको की रचना करने वाला ,सब कुछ उसी उत्पन हुआ है ,उस जगत्पिता की आराधना कर ,जैसे हम कर रहे है (यजुर वेद)
क्या करता है परमात्मा
अह दौ गणते पुर्व व्स्त्म ब्र्म्ह कृष्ण म्हा बेर्ध्ने
अह भुव यजमान योदिता साछि विस्व्भिरे
हे एक मात्र सत्य,इस जगत के स्वामी(ब्रम्हा ) ,अन्न से लेकर वस्त्र तक देने वाला(विष्णु ), हमारे आत्मा की सारथी(कृष्ण),सब वही एक है. जो सब कार्य बनाने वाला ,धारण करने वाला ,हमारे कर्मो का फल देने वाला है, वही एक मात्र पुज्नेया है .
कैसा दिखता वो है
अग्ने नय सुपुथा राये अस्मान विस्वानि देव विद्व्न
हजारो सूर्य से जायदा प्रकाशित ,वो परमात्मा प्रकाश स्वरुप है ,जो इस जगत में आच्छादित है
समूचे जगत को अपने अंदर समेटे हुए है ,वो एक मात्र परमात्मा है
भारत की एकता अखंडता का जीवंत उधारण यहाँ पढ़ें
@-जो निर्गुण है उस में गुण कैसा ? ? गुण अवगुण तो मनुष्य में होते है
ईश्वरीय गुण
इश्वर तो निर्गुण है पर मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले गुणों को हम ईश्वरीय गुण कहते है
दया ,छमा ,प्रेम ,परोपकार आदि गुणों को ईश्वरीय गुण कहते है ये वे गुण है जिन्हें अपनाने पर आत्मसंतुष्टि मिलती है और आत्मबल मिलता है
....
अद्भुत जानकारी दी आपने। आपके लेखन में बहुत शक्ति है। आत्मा से लिखे हुए आपके चिट्ठे बेहद सराहनीय हैं।
.
Post a Comment