हमारे ऋषि और महात्मा पहले जो वरदान या श्राप देते थे वो फलित होता था . ऐसा वे कैसे करते थे इस के बारे में काफी मंथन के बाद जो समझ में आया वो रख रहा हू . आप के विचार का भी स्वागत है .
अगर विज्ञानं की द्रष्टि से देखा जाये तो हर परमाणु की अपनी आवृत्ति होती है . जब कही से परमाणु को ऊर्जा मिल जाती है तो उस की आवृत्ति बढ़ जाती है जब तक की वह उस अतिरिक्त ऊर्जा को अपने पडोसी परमाणु को नही दे देता .
जिस प्रकार परमाणु की आवृत्ति होती है उसी प्रकार प्राण की भी आवृत्ति होती है , जितनी उस की आवृत्ति होगी उस का इलेक्ट्रो मेग्नेटिक फिल्ड उतना की शसक्त होगा. अर्थात आस पास के वातावरण में उतना ही उस का प्रभाव होगा .
कहने का तात्पर्य यह है की चेतना के स्तर होते है . चेतना के स्तर पर ही निर्भर है उस का प्रकति पर प्रभाव या प्रकति का उस के सापेक्ष होना .
आप एक वृत्त को देखिये . उस की परिधि पर असंख्य बिंदु होते है . जैसे जैसे आप वृत्त के केंद्र की तरफ जायेंगे उन बिन्दुओ के बीच की दुरी घटती जाएगी . और वृत्त के केंद्र पर सिर्फ एक ही बिंदु होगा .
उपरोक्त उद्दहरण से आप चेतना के स्तर को समझ सकते है . प्रकति में अनेक विभिन्नताए है पेड़ , पौधे , ग्रह उपग्रह ,तारा मंडल आदि आदि .चेतना के इस स्तर पर असंख्य भिन्नताए है पर जैसे जैसे चेतना का स्तर उठता जाता है भिन्नताए समाप्त होती जाती है .और उस परम चेतना के बिंदु पर कोई भिन्नता नही रहा जाती वो एक ही है वही है
एकोहम बहुस्यामि
एक से ही अनेक है .
अब आती है इच्छित और वरदान देने की बात . यदि चेतना के स्तर अलग अलग है तो आप एक वृत्त के अन्दर असंख्य वृत्त की कल्पना कर सकते है अर्थात एक वृत्त अपने अन्दर वृत्त को पूरा धारण करता है परन्तु जिस वृत्त के अन्दर वह है उस का कुछ ही भाग जो उस में है जानता है. ठीक इसी प्रकार चेतना भी है .
वरदान उच्च चेतना अपने से निम्न चेतना को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दे सकती है . वो अपने से निम्न चेतना को तो पूरी तरह समझ सकती है पर अपने से उच्च चेतना को पूरी तरह नही जान सकती . यही से गुरु की महिमा समझी जा सकती है . इसी लिए गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु का चयन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए .
वरदान या इच्छित की प्राप्ति का आशीर्वाद आप की चेतना पर है . क्यों की आप ही तो है देने वाले और लेने वाले भी ,आप अपने किस स्वरुप पर है यही निर्धारित करता है
अभी मैंने कुछ दिन पहले एक सपना देखा . मैंने देखा की एक व्यक्ति से मैं तलवार के साथ लड़ रहा हू . मैं उस को हराना चाहता था पर वो हर बार मुझे तलवार से घायल कर देता है और हार नही रहा था . फिर मैंने सोचा की क्यों की ये एक सपना है और मैं ही ये पहले ही उस की जीत निर्धारित कर चुका हू तो यह नही हार सकता और मेरी नीद तुरंत ही खुल गयी .
मेरे अन्तः चेतन ने ने अपनी ईच्क्षा से पहले ही सब निर्धारित कर दिया था और मेरा छुद्र मन अपनी ईच्क्षा के अनुसार वांक्षित चाहता था . बस यही है वरदान और इच्छित की प्राप्ति का राज .
हम अपने चेतना के स्तर को बढ़ा कर अपनी इच्छा जान सकते है जो हर चीज निर्धारित कर देती है
यही है भविष्यवाणी का राज
अगले लेख में हम चेतना का स्तर कैसे बढ़ा सकते है इस पर चर्चा करेंगे
अगर विज्ञानं की द्रष्टि से देखा जाये तो हर परमाणु की अपनी आवृत्ति होती है . जब कही से परमाणु को ऊर्जा मिल जाती है तो उस की आवृत्ति बढ़ जाती है जब तक की वह उस अतिरिक्त ऊर्जा को अपने पडोसी परमाणु को नही दे देता .
जिस प्रकार परमाणु की आवृत्ति होती है उसी प्रकार प्राण की भी आवृत्ति होती है , जितनी उस की आवृत्ति होगी उस का इलेक्ट्रो मेग्नेटिक फिल्ड उतना की शसक्त होगा. अर्थात आस पास के वातावरण में उतना ही उस का प्रभाव होगा .
कहने का तात्पर्य यह है की चेतना के स्तर होते है . चेतना के स्तर पर ही निर्भर है उस का प्रकति पर प्रभाव या प्रकति का उस के सापेक्ष होना .
आप एक वृत्त को देखिये . उस की परिधि पर असंख्य बिंदु होते है . जैसे जैसे आप वृत्त के केंद्र की तरफ जायेंगे उन बिन्दुओ के बीच की दुरी घटती जाएगी . और वृत्त के केंद्र पर सिर्फ एक ही बिंदु होगा .
उपरोक्त उद्दहरण से आप चेतना के स्तर को समझ सकते है . प्रकति में अनेक विभिन्नताए है पेड़ , पौधे , ग्रह उपग्रह ,तारा मंडल आदि आदि .चेतना के इस स्तर पर असंख्य भिन्नताए है पर जैसे जैसे चेतना का स्तर उठता जाता है भिन्नताए समाप्त होती जाती है .और उस परम चेतना के बिंदु पर कोई भिन्नता नही रहा जाती वो एक ही है वही है
एकोहम बहुस्यामि
एक से ही अनेक है .
अब आती है इच्छित और वरदान देने की बात . यदि चेतना के स्तर अलग अलग है तो आप एक वृत्त के अन्दर असंख्य वृत्त की कल्पना कर सकते है अर्थात एक वृत्त अपने अन्दर वृत्त को पूरा धारण करता है परन्तु जिस वृत्त के अन्दर वह है उस का कुछ ही भाग जो उस में है जानता है. ठीक इसी प्रकार चेतना भी है .
वरदान उच्च चेतना अपने से निम्न चेतना को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दे सकती है . वो अपने से निम्न चेतना को तो पूरी तरह समझ सकती है पर अपने से उच्च चेतना को पूरी तरह नही जान सकती . यही से गुरु की महिमा समझी जा सकती है . इसी लिए गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु का चयन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए .
वरदान या इच्छित की प्राप्ति का आशीर्वाद आप की चेतना पर है . क्यों की आप ही तो है देने वाले और लेने वाले भी ,आप अपने किस स्वरुप पर है यही निर्धारित करता है
अभी मैंने कुछ दिन पहले एक सपना देखा . मैंने देखा की एक व्यक्ति से मैं तलवार के साथ लड़ रहा हू . मैं उस को हराना चाहता था पर वो हर बार मुझे तलवार से घायल कर देता है और हार नही रहा था . फिर मैंने सोचा की क्यों की ये एक सपना है और मैं ही ये पहले ही उस की जीत निर्धारित कर चुका हू तो यह नही हार सकता और मेरी नीद तुरंत ही खुल गयी .
मेरे अन्तः चेतन ने ने अपनी ईच्क्षा से पहले ही सब निर्धारित कर दिया था और मेरा छुद्र मन अपनी ईच्क्षा के अनुसार वांक्षित चाहता था . बस यही है वरदान और इच्छित की प्राप्ति का राज .
हम अपने चेतना के स्तर को बढ़ा कर अपनी इच्छा जान सकते है जो हर चीज निर्धारित कर देती है
यही है भविष्यवाणी का राज
अगले लेख में हम चेतना का स्तर कैसे बढ़ा सकते है इस पर चर्चा करेंगे