जल तत्व की उत्पत्ति अग्नि तत्व के बाद मानी गयी है . जल हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है . वायु और अग्नि तत्व मिल कर इस का निर्माण करते है . जहा हम भोजन के बिना महीनो जीवित रह सकते है तो पानी के बिना सिर्फ कुछ दिन .
चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से जल आवेशित हो कर सैकड़ो फुट ऊपर उठ जाता है . हमारे शरीर में भी जल की अधिकता है . तो सोचिये ये जल आवेशित हो कर हमें कितना प्रभावित करता होगा .
जब हम तत्व के रूप में जल को जानने की कोसिस करते है तो हम पाते है की यही वो तत्व है जो की स्रष्टि के निर्माण के बाद जीवन की उत्पत्ति का कारण है .
जल तत्व की उत्पत्ति
जल तत्व की उत्त्पत्ति वायु और अग्नि से मानी गयी है . वायु के घर्षण से अग्नि उत्पन्न हुई और अग्नि ने वायु से जल का निर्माण किया .
इसे हम विज्ञानं के जरिये समझ सकते है . एक बीकर में हाईड्रोजन और एक बीकर में आक्सीजन ले कर उन्हें एक नली से जोड़े . अब हम जैसे ही बेक्ट्री के जरिये स्पार्क करेंगे हईड्रोजन के दो अणु आक्सीजन के एक अणु से मिल कर जल के एक अणु का निर्माण कर देते है . जल का निर्माण तब तक नही होता जब तक की अग्नि न हो .
यह पर मैं तत्वों का क्रम सिर्फ इस लिए स्पस्ट कर रहा हू की स्रष्टि के निर्माण क्रम को समझा जा सके . जिस स्रष्टि के निर्माण क्रम को जानने के लिए इतने बड़े प्रयोग हो रहे है और उसे जानने में अभी और न जाने कितना समय लगेगा उस को तो हमारे ऋषि मुनियों ने हजारो वर्ष पहले खोज लिया था . आगे एक पोस्ट पर मैं इसे स्पष्ट करूँगा .
लाभ - इस तत्व को जानने वाला अपनी भूख और प्यास पर नियंत्रण पा लेता है .यही कारण था की हमारे ऋषि लम्बे समय तक ध्यान में रहने पर भी इस बीच उन को भूख और प्यास नही लगती थी . ये स्वयं पर विजय का प्रतीक है .
रंग एव आकृति - इस की आकृति अर्ध चाँद जैसी और रंग चांदी के समान माना गया है . ध्यान में इसी आकृति और रंग का ध्यान करते है
पहचान
श्वास द्वारा - इस समय श्वास बारह अंगुल तक चल रही होती है . इस समय स्वर भीगा चल रहा होता है .
दर्पण विधि द्वारा - इस की आकृति अर्ध चाँद जैसी बनती है
स्वाद द्वारा - जब यह स्वर चल रहा हो मुख का स्वाद कसैला प्रतीत होता है.
रंग द्वारा - इस का रंग ध्यान में चांदी जैसा प्रतीत होता है
बीज मंत्र - वं
ध्यान विधि - सिद्ध आसन में अर्ध चाँद जैसी आकृति को देखे जिस का रंग चांदी जैसा हो और बीज मंत्र का जप करे
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Wednesday, November 24, 2010
Sunday, November 14, 2010
तत्व दर्शन परिचय भाग -3,अग्नि तत्व
हमारी सनातन या वैदिक संस्कृति यज्ञ संस्कृति रही है . हम सतयुग से ही अग्नि के उपासक रहे है .अग्नि में सदैव ऊपर उठने का गुण होता है . यदि हम अपने वैदिक ध्वज पर ध्यान दे जो उस का रंग और और उस की आकृति अग्नि का प्रतीक है . हमारा तेज जिसे वैज्ञानिक भाषा में हम अपनी इलेक्ट्रो मैग्नटिक फिल्ड भी कहते है अग्नि तत्व पर निर्भर करता है .
यह असीम ऊर्जा का स्रोत है . इसे हम शिव तत्व के नाम से भी जानते है . .जिस की जानकारी पिछली पोस्ट शिव का वास्तविक स्वरूप में दे चुके है .
किसी भी कार्य चाहे वो अध्यात्मिक वो या सांसारिक हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है . और स्थूल से सूछ्म ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है .अग्नि तत्व न सिर्फ हमें प्रभावशली बनता है अपितु हमारी अध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति भी करता है .
अग्नि तत्व की उत्पत्ति
वायु तत्व के बाद अग्नि की उत्त्पत्ति वायु के घर्षण से मानी जाती है. जितने भी भी तारे है वो सब वायु के गोले है और उनके घर्षण ( नाभिकीय संलयन या विखंडन ) से ही अग्नि की उत्पत्ति हुई .
शरीर और ग्रह में अग्नि तत्व
शरीर में दोनों कंधे अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते है . जव सूर्य स्वर ( दाहिना स्वर ) चल रहा हो और उस में अग्नि तत्व हो तो ;यह मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है
जब चन्द्र स्वर चल रहा और अग्नि तत्व हो तो ;यह शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है .
पहचान
श्वास द्वारा -- जब साँस ४ अंगुल तक चल रही तो तो अग्नि तत्व होता है
स्वाद द्वारा -- सूक्ष्म विश्लेषण करने पर मुख का स्वाद तीखा प्रतीत होता है .
रंग द्वारा -- इस का रंग लाल होता है . ध्यान विधि द्वारा इसे हम जान सकते है
आकृति -- इस की आकृति त्रिकोण होती है
दर्पण विधि द्वारा -- दर्पण विधि में में हम साँस का प्रवाह ऊपर की तरफ पाएंगे और आकृति त्रिकोण होगी .
बीज मंत्र -- रं
लाभ -- इस के प्रयोग से भूख बढती है , प्यास लगती है , जिन को भूख न लगती हो तो उस का पयोग करे और निश्चित लाभ पाए . ;ये प्राकतिक प्रयोग है जो निश्चित ही लाभ प्रदान करता है .
युद्ध में या अन्य साहसिक कार्य में सफलता दिलाता है .
जब आप को कभी काफी जोर से क्रोध आये उस वक्त यदि आप गौर करेंगे तो अग्नि तत्व ही चल रहा होगा .
प्रयोग -- अपने सिद्ध आसन में इस के बीज मंत्र का जाप करते हुए ध्यान में एक त्रिकोण आकृति जिस का रंग लाल हो देखे .
यह असीम ऊर्जा का स्रोत है . इसे हम शिव तत्व के नाम से भी जानते है . .जिस की जानकारी पिछली पोस्ट शिव का वास्तविक स्वरूप में दे चुके है .
किसी भी कार्य चाहे वो अध्यात्मिक वो या सांसारिक हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है . और स्थूल से सूछ्म ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है .अग्नि तत्व न सिर्फ हमें प्रभावशली बनता है अपितु हमारी अध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति भी करता है .
अग्नि तत्व की उत्पत्ति
वायु तत्व के बाद अग्नि की उत्त्पत्ति वायु के घर्षण से मानी जाती है. जितने भी भी तारे है वो सब वायु के गोले है और उनके घर्षण ( नाभिकीय संलयन या विखंडन ) से ही अग्नि की उत्पत्ति हुई .
शरीर और ग्रह में अग्नि तत्व
शरीर में दोनों कंधे अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते है . जव सूर्य स्वर ( दाहिना स्वर ) चल रहा हो और उस में अग्नि तत्व हो तो ;यह मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है
जब चन्द्र स्वर चल रहा और अग्नि तत्व हो तो ;यह शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है .
पहचान
श्वास द्वारा -- जब साँस ४ अंगुल तक चल रही तो तो अग्नि तत्व होता है
स्वाद द्वारा -- सूक्ष्म विश्लेषण करने पर मुख का स्वाद तीखा प्रतीत होता है .
रंग द्वारा -- इस का रंग लाल होता है . ध्यान विधि द्वारा इसे हम जान सकते है
आकृति -- इस की आकृति त्रिकोण होती है
दर्पण विधि द्वारा -- दर्पण विधि में में हम साँस का प्रवाह ऊपर की तरफ पाएंगे और आकृति त्रिकोण होगी .
बीज मंत्र -- रं
लाभ -- इस के प्रयोग से भूख बढती है , प्यास लगती है , जिन को भूख न लगती हो तो उस का पयोग करे और निश्चित लाभ पाए . ;ये प्राकतिक प्रयोग है जो निश्चित ही लाभ प्रदान करता है .
युद्ध में या अन्य साहसिक कार्य में सफलता दिलाता है .
जब आप को कभी काफी जोर से क्रोध आये उस वक्त यदि आप गौर करेंगे तो अग्नि तत्व ही चल रहा होगा .
प्रयोग -- अपने सिद्ध आसन में इस के बीज मंत्र का जाप करते हुए ध्यान में एक त्रिकोण आकृति जिस का रंग लाल हो देखे .
Saturday, November 6, 2010
तत्व दर्शन परिचय भाग -२, वायु तत्व
श्रष्टि निर्माण क्रम में space अर्थात आकाश तत्व के बाद वायु तत्व आया ..इसे आप ऐसे समझ सकते है की ब्रह्माण्ड जितने भी तारे है वो गैस के गोले है और उस के बाद ग्रह , उपग्रह . गणिकाए आदि उन के टूटे हुए भाग है .
जहा वायु के घर्षण से अग्नि उत्त्पन्न होती और तो वही जल भी वायु के एक निश्चीत अनुपात में बना मिश्रण मात्र है .
आईये भारतीय दर्शन में इस को स्पष्ट रूप से समझे .
वायु तत्व
इस तत्व को साधना बेहद कठिन है इस की महत्ता इस बात से ही समझ में आती है की हमारा सूक्ष्म शरीर ५ प्रकार की वायु आपान , उदान, व्यान, समान और प्राण में और १० प्रकार की उपवायु में वर्णित है .
इस तत्व की पहचान निम्न तरीको से कर सकते है .
श्वास द्वारा -- इस की पहचान हम अपनी श्वास द्वारा कर सकते है . यदि श्वास ८ अंगुल तक चल रही हो वायु तत्व चल रहा होता है .इस की लिए आप अपने सर को सीधा रख कर अपनी श्वास की गति अपने हाथ से (हथेली के ठीक विपरीत ) महसूस करे .
स्वाद द्वारा -- सूक्ष्म अध्यन करने पर मुख का स्वाद खट्टा प्रतीत होता है .
दर्पण विधि द्वारा -- यदि वायु तत्व चल रहा हो तो इस की गति तिरछी होती है . इस का आकार गोल होता है .
रंग -- इस का रंग काला या गहरा नीला होता है .
लाभ -- कुंडली जागरण में जो लाभ है उस की पम्पूर्ण लौकिक सिद्धियाँ इस तत्व में प्राप्त हो जाती है और इन का त्याग कर आकाश तत्व सिद्ध कर साधक परालौकिक शक्तिया प्राप्त कर लेता है . स्पष्ट है की बाकि के तीन तत्व तत्व भी इसी से बनते है अतः वे स्वयं ही सिद्द हो जाते है .
तंत्र शास्त्र में अनेक विधियाँ आकाश में आवागमन की दी हुई है . जो साधक वायु में चिड़िया की तरह उड़ने की तथा दूसरो के मन की बात अपने आप जानने की इच्छा रखता हो वह श्रद्धा पूर्वक इस का मंत्र सिद्ध करे .
बीज मंत्र -- यं
साधना विधि -- इस मंत्र की साधना के लिए आप आसान लगा कर बैठ जाये और हवा में स्थिर एक काले गोले का ध्यान करे और इस के बीज मंत्र का उच्चारण करे .
शरीर में स्थान -- शरीर में नाभि में इस का स्थान माना जाता है .
जहा वायु के घर्षण से अग्नि उत्त्पन्न होती और तो वही जल भी वायु के एक निश्चीत अनुपात में बना मिश्रण मात्र है .
आईये भारतीय दर्शन में इस को स्पष्ट रूप से समझे .
वायु तत्व
इस तत्व को साधना बेहद कठिन है इस की महत्ता इस बात से ही समझ में आती है की हमारा सूक्ष्म शरीर ५ प्रकार की वायु आपान , उदान, व्यान, समान और प्राण में और १० प्रकार की उपवायु में वर्णित है .
इस तत्व की पहचान निम्न तरीको से कर सकते है .
श्वास द्वारा -- इस की पहचान हम अपनी श्वास द्वारा कर सकते है . यदि श्वास ८ अंगुल तक चल रही हो वायु तत्व चल रहा होता है .इस की लिए आप अपने सर को सीधा रख कर अपनी श्वास की गति अपने हाथ से (हथेली के ठीक विपरीत ) महसूस करे .
स्वाद द्वारा -- सूक्ष्म अध्यन करने पर मुख का स्वाद खट्टा प्रतीत होता है .
दर्पण विधि द्वारा -- यदि वायु तत्व चल रहा हो तो इस की गति तिरछी होती है . इस का आकार गोल होता है .
रंग -- इस का रंग काला या गहरा नीला होता है .
लाभ -- कुंडली जागरण में जो लाभ है उस की पम्पूर्ण लौकिक सिद्धियाँ इस तत्व में प्राप्त हो जाती है और इन का त्याग कर आकाश तत्व सिद्ध कर साधक परालौकिक शक्तिया प्राप्त कर लेता है . स्पष्ट है की बाकि के तीन तत्व तत्व भी इसी से बनते है अतः वे स्वयं ही सिद्द हो जाते है .
तंत्र शास्त्र में अनेक विधियाँ आकाश में आवागमन की दी हुई है . जो साधक वायु में चिड़िया की तरह उड़ने की तथा दूसरो के मन की बात अपने आप जानने की इच्छा रखता हो वह श्रद्धा पूर्वक इस का मंत्र सिद्ध करे .
बीज मंत्र -- यं
साधना विधि -- इस मंत्र की साधना के लिए आप आसान लगा कर बैठ जाये और हवा में स्थिर एक काले गोले का ध्यान करे और इस के बीज मंत्र का उच्चारण करे .
शरीर में स्थान -- शरीर में नाभि में इस का स्थान माना जाता है .
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