tag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post2416137108537259400..comments2023-08-29T06:03:08.682-07:00Comments on शिव का वास्तविक स्वरूप: कृष्ण शक्तिABHISHEK MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-45997006917520118912015-11-21T07:41:42.368-08:002015-11-21T07:41:42.368-08:00धन्यवाद
धन्यवाद<br />ABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-10709485139489505562015-10-29T02:04:04.715-07:002015-10-29T02:04:04.715-07:00धन्यवाद मिश्रा जी, आपके अध्ययन मनन ,परिश्रम का फल ...धन्यवाद मिश्रा जी, आपके अध्ययन मनन ,परिश्रम का फल हमें मिल रहा है...JC जी आपका भी धन्यवाद..Rajhttps://www.blogger.com/profile/17958571111772906155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-33454469347383439432011-01-11T02:40:49.338-08:002011-01-11T02:40:49.338-08:00बहुत ही सुन्दर व सार्थक बहस व प्रस्तुतुतीकरण चल रह...बहुत ही सुन्दर व सार्थक बहस व प्रस्तुतुतीकरण चल रहा है....JC जी का तो धन्यवाद है ही परन्तु अभिषेक द्वारा प्रतुतीकरण के साथ ही यह अध्याय खुला जो वस्तुतः भारतीय वैदिक-विग्यान , औपनिषदीय अध्यात्म-दर्शन व शास्त्रीय दर्शन ग्यान और-पौराणिकीय कथा महात्म्य की तात्विक-व्याख्या हैं----हिन्दू -सनातन धर्म का सार हैं.....आप लोग बधाई के पात्र हैं.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-56122489381987454392011-01-06T22:55:40.495-08:002011-01-06T22:55:40.495-08:00साधारण तौर पर मानव शरीर को दो भाग में देखा जा सकता...साधारण तौर पर मानव शरीर को दो भाग में देखा जा सकता है, अरबी संख्या ‘8’ (आठ) के आकार में, एक छोटे और एक बड़े दो वृत्ताकार द्वारा प्रदर्शित - सर, और धड... <br /><br />हिन्दू कथा-कहानियों में एक प्रसंग आता है जिसमें "पार्वती- पुत्र गणेश का सर शनि की दृष्टि पड़ने से ही कट गया!,,, और जिसके स्थान पर शिव ने हाथी का सर लगा गणेश को पुनर्जीवित <br />कर दिया"! यानि प्रकृति में विनाशकारी और सृजनात्मक (+ / -) दोनों प्रकार की शक्तियां विराजमान हैं! <br /><br />दूसरा प्रसंग है राक्षश राहू का धोखे से अमृत धारण के तुरंत बाद मोहिनी रूप में विष्णु द्वारा सर काटने और उन्हें परछाईयों, राहू और केतु (ऊर्जा), में परिवर्तित किये जाने का...और इस सन्दर्भ की पृष्ठभूमि में, चार चरणों में क्षीरसागर मंथन द्वारा जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म के माध्यम से अनंत चक्र रचने के उद्देश्य से अष्ट-ग्रह के द्वारा रचित काल-चक्र के उपयोग का संकेत हैं,,,जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इशारा आठ ग्रहों के सारों से चार परिवर्तित जोड़े बने जाना,,,<br /><br />चन्द्र का सार (पीला रंग?), गुरु, पार्वती, पीताम्बर कृष्ण (विष्णु का मोहिनी रूप?), जो पृथ्वी से उत्पन्न हो दूर से ही उसको सोमरस याने अमृत का पान करा रहा है, देवताओं को!,,, सहस्रारा चक्र याने मानव शरीर में सबसे उच्च स्थान सर याने मस्तक पर,,, और यूँ चन्द्र से संलग्नित पृथ्वी का सार (नीले और पीले, नीलाम्बर और पीताम्बर कृष्ण के योग से बना, हरा रंग) शिव (हर अथवा हरि !) के तीसरे नेत्र के स्थान पर याने 'अजना चक्र' पर, जिस पर 'पहुंचे हुए' जोगी एकांत में ध्यान लगाते हैं,,,अन्यथा 'महाभारत' के अज्ञानी और 'महाभारत के युद्ध क्षेत्र में' हताश अर्जुन समान पुरुष नीचे, नासिका के सबसे नीचे स्थान पर, जैसा गीता में दर्शाया गया है सत्य की अनुभूति, 'आत्म ज्ञान' हेतु ...<br /> <br />और धड में छः में से, सबसे नीचे, विघ्न-हर्ता गणेश/ संकट मोचन हनुमान, मंगल ग्रह का सार (नारंगी रंग) 'मूलाधार' में, और उसके ऊपर ऐस्तेरोइड के सार (काली की जिव्हा द्वारा प्रदर्शित, लाल रंग?) से संलग्नित (मूषक, अथवा वानर सेना) ,,, और इसी प्रकार धड के सबसे उपरी स्थान में शुक्र का सार (नीला रंग, नीलाम्बर कृष्ण और मोर वाहन वाले शिव-पुत्र कार्तिकेय से सम्बंधित) गले में माना गया है,,, और सूर्य के सार को मध्य में, पेट में,,, जिसे जान उसके नीचे बृहस्पति, और उसके ऊपर बुद्ध का स्थान माना जा सकता है...और क्यूंकि सूर्य (ब्रह्मा?) से अल्ट्रा-वायोलेट और इन्फ्रा-रेड शक्तियां जुडी हैं (कौरव-पांडवों, और सूर्यवंशी राजाओं, दोनों के दो गुरु) तो उन्हें क्रमशः ऊपर (सीने में) बुद्ध के साथ और नीचे (नाभि-स्थान पर) बृहस्पति के साथ संलग्नित भी होने का अनुमान लगाया जा सकता है...इस प्रकार चार युग के द्योतक, चार ग्रहों के जोड़े माने जा सकते हैं, #१ मंगल-ऐस्तेरोइड; #२ बृहस्पति-सूर्य; #३ बुद्ध-शुक्र; और #४ पृथ्वी-चन्द्र...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-32619871090369233792011-01-06T06:24:28.740-08:002011-01-06T06:24:28.740-08:00प्रिय अभिषेक जी
आपके प्रस्तुत लेख की जितनी भी सरा...प्रिय अभिषेक जी <br />आपके प्रस्तुत लेख की जितनी भी सराहना की जाय कम है,जिस तार्किक और वैज्ञानिक ढंग से हिंदुत्व के आध्यात्मिक पक्षों को आपने उजागर किया है, इसके लिए कोटिशः धन्यवाद|<br />अग्निमीले पुरोहितं....इस ऋचा के माध्यम से हमारा वैदिक ऋषि धर्म के अत्यंत सीधे पक्ष को प्रस्तुत कर्ता है...लोगों ने उसे नाहक ही उलझा दिया हैManoj Kumar Singh 'Mayank'https://www.blogger.com/profile/13509670923925698841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-49061037252027041532011-01-04T22:09:52.625-08:002011-01-04T22:09:52.625-08:00अभिषेक जी, प्रसन्नता हुई जान कर कि आपको मेरे मानस ...अभिषेक जी, प्रसन्नता हुई जान कर कि आपको मेरे मानस मंथन के उपरांत प्राप्त, और संक्षिप्त में प्रस्तुत विचार लाभदायक लगे. धन्यवाद!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-31586012967119727662011-01-04T10:24:48.021-08:002011-01-04T10:24:48.021-08:00वाह , क्या बात बताई आप ने
अगर कोई वास्तव में मनन ...वाह , क्या बात बताई आप ने <br />अगर कोई वास्तव में मनन करने वाला है तो उस के लिए तो ये अनमोल हैABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-66815340386664090392011-01-04T05:00:51.145-08:002011-01-04T05:00:51.145-08:00और जैसा आज हम जानते हैं, उन्होंने भी यह 'सत्...और जैसा आज हम जानते हैं, उन्होंने भी यह 'सत्य' जाना होगा कि कैसे यदि पृथ्वी का एक वर्ष ३६५ दिन का होता है, बुद्ध का केवल ८८ दिन का, और नवं ग्रह, 'सूर्यपुत्र शनि' (‘शनै’ यानि धीमी गति वाले) का ३० वर्ष का, जबकि बृहस्पति का १२ वर्ष का, (जो 'कुम्भ के मेले' को उतनी ही अवधि में मनाये जाना भी दर्शाता है?) और अष्टम ग्रह, बृहस्पति यानि 'गुरु' को, विष्णु के अष्टम अवतार श्री कृष्ण समान श्रेष्ठ स्थान दिया जाना भी?...और कह सकते हैं जब व्यक्ति विशेष पर काल-चक्र में बुद्ध का मुख्य रूप से नियंत्रण हो तो व्यक्ति तेज़ (दुर्घटना संभव?), और शनि का हो, तो व्यक्ति सुस्त दिखाई देगा (बीमारी आदि परेशानी के कारण, या विष्णु समान शैय्या पर विश्राम करते ?) ...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-57361141442822352362011-01-04T04:43:42.839-08:002011-01-04T04:43:42.839-08:00उपरोक्त का आशय यह समझने और समझाने का था कि 'सत...उपरोक्त का आशय यह समझने और समझाने का था कि 'सत्य' और 'परम सत्य' तक पहुँचने में मानव सक्षम है, ‘प्रकृति’ में उपलब्ध अनेकों संकेत के माध्यम से,,, कभी भी और कहीं भी,,,एक अद्भुत मशीन की भांति जिसके सही उपयोग की विधि की जानकारी हो और जिसका रख-रखाव भी सही रूप से निरंतर किया जाता हो...ऐसे जोगियों ने कठिन तपस्या के पश्चात जाना कि श्रृष्टि का सर्वगुण संपन्न रचयिता शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है,,,जबकि अन्य अस्थायी जीव', यानि विभिन्न यंत्र, समय समय पर अलग अलग घड़ियों से सम्बंधित हैं क्यूंकि, जैसे 'नवग्रह और अष्ट चक्र' शब्दों का उपयोग दर्शाते हैं, वे शून्य के अतिरिक्त आठ ग्रहों के सार से निर्मित होने के कारण आठ दिशाओं द्वारा नियंत्रित जाने गए,,, जिसमें हर दिशा का राजा सूर्य से ले कर बृहस्पति तक कोई ग्रह विशेष होता है जबकि सूचना और शक्ति को (रेलगाड़ी में सफ़र करते यात्रियों समान?) ऊपर मस्तिष्क तक, और नीचे मूलाधार तक पहुंचाने का कार्य शनि ग्रह का,,, तीन मुख्य नाड़ियों के माध्यम से, वैसे ही जैसे गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र का जल मानसरोवर से सागर तक पहुँचता है और फिर से वापिस सूर्य के प्रभाव से, 'कृष्ण' यानी बृहस्पति से शक्ति पा जिसमें हाईड्रोजन गैस तरल रूप में, उच्च दबाव में उपलब्ध है,,, और वर्तमान के सन्दर्भ में जो बृहस्पति और सूर्य के बीच खाना पकाने वाली सिलिंडर में भरी गैस और उसका चूल्हे से नली द्वारा जुडाव समान सम्बन्ध दर्शाता है, यद्यपि दोनों अंतरिक्ष-रुपी-रसोई में एक दूसरे से दूर प्रतीत क्यूँ न होते हों, (और सौर-मंडल की श्रंखला को चक्र बनाने हेतु काट कर और मोड़ कर जोड़ने की आवश्यकता, और इस प्रकार सूर्य को मध्य में, चन्द्र को सबसे ऊपर और मंगल को नीचे ला और परिवर्तित श्रंखला को मेरु दंड में देखा जोगियों ने !),,,इत्यादि…JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-66111838475251952512011-01-02T23:35:32.216-08:002011-01-02T23:35:32.216-08:00जोगियों ने काल-चक्र को अनंत जाना: 'ब्रह्मा'...जोगियों ने काल-चक्र को अनंत जाना: 'ब्रह्मा' यानि 'रचयिता' के ४ अरब से अधिक उनके एक दिन, और उतनी ही लम्बी एक रात द्वारा,,, <br />चार युगों को 'सागर-मंथन' के चार चरणों से सम्बंधित, जिस में हर युग में मानव की कार्य क्षमता को प्रकृति के साथ साथ उत्तरोत्तर उत्पत्ति करते जाना: ४,३२, ००० वर्ष के कलियुग में शून्य से २५%; इसके दो गुने काल के द्वापर में २५ से ५०%; तीन गुने काल के त्रेता में ५० से ७५%; और चार गुने काल के सतयुग में ७५ से १००% (यूं एक महायुग ४३,२०, ००० वर्ष का अमृत शिव तक पहुँचने के लिए, और ब्रह्मा के एक दिन की लीला को लगभग १००० महायुग द्वारा सम्पूर्ण अंतरिक्ष के ३६० डिग्री को ३ भागों, यानि कुल १०८० महायुगों द्वारा प्रदर्शित किया जाना जो उनके एक दिन और एक रात को ४ अरब वर्ष से अधिक दर्शाती है) ... <br />और मायावी अनंत शक्ति रूप में कृष्ण, जिनका एक अंश सब जीव एवं साकार भौतिक रूपों के भीतर भी विराजमान है, उस के सर्वोत्तम रूप को पृथ्वी, (अमर) 'गंगाधर' और 'चंद्रशेखर' शिव के रूप में प्रदर्शित और उसके केंद्र को विष्णु (नादबिन्दू) ब्रह्माण्ड का केंद्र भी जाना... <br />और "वसुधैव कुटुम्बकम" द्वारा पृथ्वी पर जन्म लेते और पलते, लीला करते एवं अंततोगत्वा मृत्यु को प्राप्त होते, अनंत प्राणियों और उनकी हर जाति के सदस्य को पृथ्वी का ही परिवार के एक सदस्य समान जाना...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-5612358738136274472011-01-01T19:49:09.026-08:002011-01-01T19:49:09.026-08:00हर हिन्दू शायद जानता है कि शिव 'नटराज' की ...हर हिन्दू शायद जानता है कि शिव 'नटराज' की मूर्ती के माध्यम से हमारे ज्ञानी-ध्यानी पूर्वजों ने सांकेतिक भाषा में मानव को, उनके चरण के नीचे लेटे, 'अपस्मरा पुरुष' दर्शाया,, यानि भुलक्कड़, एक ऐसा व्यक्ति जो एम्नीसिया के मरीज़ समान अपनी याददाश्त खो बैठा हो,,, हर व्यक्ति को एक ऐसा यंत्र (९ ग्रहों के सार से बना सुपर कम्प्यूटर) दर्शाया जो बहिर्मुखी होने के कारण केवल बाहरी संसार की ही सूचना सरलता पूर्वक ग्रहण करने में अपने को सक्षम पाता है: मानव के माध्यम से निर्मित भौतिक कैमरा जैसे बाहर की ही फोटो ले पाने में सक्षम और (कलयुग में) x-रे की सहायता से केवल शरीर के अंदरूनी भौतिक ठोस भाग ही देख पाने में,,, यद्यपि संकेत मिलते रहते हैं कि स्वयं को भली प्रकार जानने के लिए भी वो सक्षम तो है, किन्तु जोगी ही तपस्या के बाद जान पाए कि उसके लिए व्यक्ति को अंतर्मुखी होना अवश्यक है, जिस के बाद ही सत्य की, 'कृष्णलीला' की, अनुभूति संभव है: मानव शरीर में उपलब्ध आठ चक्रों या बंधों, यानि गैलेक्सियों के केंद्र में समाई शक्ति के एवं सूचना के सार को, 'सहस्रार चक्र' याने मस्तिष्क पर एक स्थान पर केन्द्रित करना (या स्वयं को ईश्वर पर समर्पित कर प्राकृतिक तौर पर ऐसा होने देना!) ...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-76208235231299000492010-12-31T04:42:16.619-08:002010-12-31T04:42:16.619-08:00निद्रावस्था में स्वप्न भी श्वेत-श्याम प्रकाश (ऊर्ज...निद्रावस्था में स्वप्न भी श्वेत-श्याम प्रकाश (ऊर्जा) का 'अजना-चक्र' रुपी पर्दे पर चित्रों को उभार संदेश देने का प्रयास है, यानि (निराकार) कृष्ण की हर प्राणी के भीतर उपस्थिति (?)... और गीता में कृष्ण दर्शाए गए हैं कहते कि सूर्य और चन्द्रमा दोनों में प्रकाश उन्हीं से है,,, और 'सागर मंथन' की कथा में दर्शाए सौर मंडल के सदस्यों यानि "देवताओं को ही उसे देने के उद्देश्य से अमृत प्राप्ति पर वितरण के समय किन्तु राक्षश राहू के देवता रूप धारण कर अमृत पान के पश्चात इन दोनों देवताओं के संकेत पर ही मोहिनी रूप धरे विष्णु ने उसके सर को उसके धड से अलग कर केवल उसकी परछाइयों, राहू और केतु, को ही प्रकृति का अंश रहने दिया" आदि कथन के माध्यम से हमारी पृथ्वी के वातावरण में समाये सात विभिन्न रंगों के अतिरिक्त अल्ट्रा वाईओलेट और इन्फ्रा रेड ऊर्जाओं का भी थोड़ी मात्रा में प्रवेश दर्शाया, और इन्हें अन्य रंगों के अतिरिक्त भी विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित: जीवन में रंग भरने के लिए!...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-83290464391798522252010-12-30T01:08:32.274-08:002010-12-30T01:08:32.274-08:00(हिंदी में)
कृष्ण 'योगिराज' कहलाये और उ...(हिंदी में) <br /><br />कृष्ण 'योगिराज' कहलाये और उन तक पहुँच (विचार-शून्य स्थिति में, निरंतर अभ्यास से?), योगी साकार संसार को श्वेत-श्याम (गौरी-काली) जनित ‘मायावी’, अथवा ‘मिथ्या जगत’, जान पाए (माया को भेद कर, साकार मानव रूप में ही जो संभव है?,,,'अर्जुन का ऊपर घूमती मछली के प्रतिबिम्ब को ही केवल नीचे देख कर, उसकी आँख भेदना'),,,<br /><br />वर्तमान के परिपेक्ष्य में, 'मायावी जगत' यानि फिल्मी जगत भी उस का एक प्रतिबिम्ब है,,, वो भी आधारित है “light, camera, action” पर, यानि वो प्रकाश का ही एक खेल है जिसके द्वारा एक ब्रह्माण्ड के प्रतिरूप समान अंधकारमय हॉल में, हाथ पर हाथ धरे बैठ भी, दर्शक केवल दृष्टा -भाव से 'वास्तविक जगत समान' विभिन्न अनुभूतियों का आनंद उठाते हैं नकली पात्रों के माध्यम से,,, किन्तु, ‘अज्ञानतावश’ (?), मानव जीवन को 'मायावी द्वैतवाद' को भेद न सकने के कारण 'सत्य' मान बैठता है हर कोई,,, जबकि योगी कह गए कि 'परम सत्य' यानि माया का इकलौता श्रोत, ऊर्जा-रुपी निराकार कृष्ण, ही केवल अमर है: वो ही विष्णु भी है और शिव भी (अमृत निराकार, जिसके विभिन्न प्रतिबिम्ब प्रकाश द्वारा जनित दूषित भौतिक ज्ञानेन्द्रियों के कारण निरंतर परिवर्तनशील प्रतीत होता साकार ब्रह्माण्ड और उसकी अस्थायी जीवन -लीला भी निरंतर पूर्व- नियोजित काल-चक्र के साथ देखते प्रतीत होते हैं?)!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-21398713093682328202010-12-30T00:08:43.498-08:002010-12-30T00:08:43.498-08:00Krishn 'yogiraj' kahlaaye aur un tak pahu...Krishn 'yogiraj' kahlaaye aur un tak pahunch (vichaar-shoonya sthiti mein nirantar abhyaas se?), Yogi saakaar sansaar ko shwet-shyam (gauri-kaali) janit ‘mayavi’, athva ‘mithya jagat’, jaan paye (maya ko bhed kar, saakaar manav roop main hi jo sambhav hai?,,,'arjun ka upar ghoomti machhli ke pratibimb ko hi kewal neeche dekh kar, uski aankh bhedna'),,,<br /><br />Vartmaan ke paripekshya mein, 'mayavi jagat' yaani filmy jagat bhi uska ek pratibimb hai,,, wo bhi aadharit hai “light, camera, action” par, yaani wo prakash ka hi ek khel hai jiske dwaara ek brahmaand ke pratiroop smaan andhkaarmay hall mein, haath par haath dhare baith bhi, darshak kewal drashta-bhav se 'vastavik jagat smaan' vibhinn anubhutiyon ka anand uthate hai nakli patron ke maadhyam se,,, kintu, ‘agyaantavash’ (?), manav jiwan ko 'mayavi dwaitwaad' ko bhed na sakne ke kaaran 'satya' maan baithta hai har koi,,, jabki yogi kah gaye ki 'param satya' yaani maaya ka iklauta shrot, oorja-roopi niraakaar krishn, hi kewal amar hai: wo hi vishnu bhi hai aur shiv bhi (amrit niraakaar, jiske vibhinn prtibimb prakash dwaara janit dooshit bhautik gyaanendriyon ke kaaran nirantar parivartansheel prateet hota saakaar brahmand aur uski asthaayi jiwan-leela bhi nirantar poorv niyojit kaal-chakr ke saath dekhte prateet hote hain?)!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-927562517850269061.post-69298340688438711602010-12-29T01:33:36.648-08:002010-12-29T01:33:36.648-08:00ज्ञानवर्धक आलेख ।
आभार।ज्ञानवर्धक आलेख ।<br />आभार।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com